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रोमियो – प्रभु हमारी धार्मिकता है|
पवित्र शास्त्र में लिखित रोमियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री पर आधारित पाठ्यक्रम
भाग 3 - परमेश्वर की धार्मिकता मसीह के अनुयायियों के जीवन में दिखाई देती है। (रोमियो 12:1 - 15:13)

2. घमंड ना करो परंतु अपने परमेश्वर की सेवा विश्वासियों के समूहों में तुम्हे दिए गये उपहारों के साथ करो (रोमियो 12:3-8)


रोमियो 12:3-8
3 क्‍योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। 4 क्‍योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगोंका एक ही सा काम नहीं। 5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 6और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न बरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यवाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यवाणी करे। 7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखानेवाला हो, तो सिखाने में लगा रहे। 8जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्‍साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।

पौलुस ने यह इस प्रकार से नहीं कहा था जैसे एक गडरिया अपनी भेड़ों को सामान्यतया सुझाव देता है परंतु आपने यह एक अन्तिम, स्पष्ट आदेश पूरे जगत के कलीसिया के शत्रुओं को दिया था|

तुम जो वास्तव में हो अपने आपको उससे ऊपर मत समझो परन्तु सचेत रहो कि तुम स्वयं कुछ भी नहीं हो, और यह कि तुम दूसरों के लिए हानिकारक हो सकते हो| अपने आध्यात्मिक उपहार को जानो और एक विशेष सेवा के लीए मसीह के बुलावे को सुनो| वही कार्य मत करो जो तुम्हे अच्छा लगता है, परन्तु मसीह के मार्गदर्शन का पालन भावनात्मक रूप से नहीं बल्कि सुविचारित रूप से करो, जो लोग आध्यात्मिक रूप से परिपक्व है उनके मार्गदर्शन का सम्मान करो|

तुम्हे मिले उपहार तुम्हारी सेवा का मानदंड नही है, परन्तु वास्तव में मसीह में तुम्हारे विश्वास का प्रसार है, क्योंकि वह अपनी इच्छा तुम्हारी सेवकाई में पूरी करने के योग्य हैं| तुम्हारे कार्यों का रहस्य उनकी शक्ति है| इसीलिए, सोचो, बोलो, और प्रत्येक कार्य यीशु के साथ, यीशु में करो, और तुम उनके प्रेम के फलों को अपने जीवन में देखोगे| सफल ईसाईयों का रहस्य उनकी आध्यात्मिक एकता है| यह एकता सांसारिक नहीं, परंतु मसीह में आध्यात्मिक है| वे लोग जैसे अपने उद्धारकर्ता का आध्यात्मिक शारीर है; जो कि, मसीह अपने कार्यों को उनके द्वारा करते है| उनमे से कोई भी अकेला विख्यात होने के कार्य नहीं करता, परंतु सभी तुम्हारी शक्ति है, और तुम उनमे निपुण किये गये हो| किसी के पास सारे उपहार नहीं है| मसीह के शरीर में, पैर को, हृदय, हाथ, सिर, आंख, इच्छा और ऊँगली दिमाग के आदेश की आवश्यकता है| इसीलिए कलीसिया रूपी शरीर केवल तभी प्रभावशाली हो सकता है जब इसके सभी सदस्य अन्य लोगों को सुने, और सभी एक साथ परमेश्वर की सेवा करें|

कितनी मूर्खतापूर्वक बात है कि तुम्हारे दिमाग की इच्छा के विरुद्ध तुम्हारा हाथ कार्य करे या तुम तुम्हारी आँखों से देखकर चलने के स्थान पर बिना देखे एक गड्डे की ओर चलो? वह जो इस बात को नहीं सीखता कि कैसे शरीर के सभी सदस्यों के साथ सहयोग करे, स्वार्थी, गरीब, छोटा, और बेवकूफ बना रहता है|

पौलुस एक निश्चित कलीसिया में आध्यात्मिक उपहारोंको शामिल करते है| वह जो सोए हुओ को जगाता है को, पवित्र बाईबिल के बारे में ना कहकर केवल मानवीय संवेदनाओं के बारे ही नहीं कहना चाहिए, परंतु परमेश्वर के वचन की सीमाओं के साथ रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति सुविचारित रूप से यीशु की ओर लाना चाहिए|

यदि किसी के भी पास योग्यता, समय, पैसा है तों उसने कलीसिया के जरुरतमंदों की सेवा करना चाहिए| उसने अधिक बोलना नहीं चाहिए, परन्तु गंभीरतापूर्वक पूर्णतया गुप्तरूप से कार्य और सेवा करना चाहिए इस बात की आशा किए बिना कि कोई उसकी सेवा करे या उसको धन्यवाद कहे, उसे मसीह के ज्ञान में उनकी सेवा करना चाहिए| आध्यात्मिक शिक्षक ने उन विचारों को जो सुसमाचार और परमेश्वर की आत्मा द्वारा दिए गये है को क्रमबद्ध करके, अपने सुननेवालों को धीरे धीरे सिखाना चाहिए, और उनको ना केवल वचन समझने में, बल्कि परमेश्वर के वचन पर अमल करने में भी मदद करनी चाहिए| यह महत्वपूर्ण नहीं है कि बहुत सारे विषय पढाये जाएँ, परन्तु धीरे धीरे सिखाए; पानी के झरने के समान ना बोलते जाये और अन्त में सुननेवालों को अपना भाषण समझेबिना ही छोड़ नहीं देना चाहिए|

यदि किसी को आध्यात्मिक सावधानी और मार्गदर्शन का उपहार प्राप्त है, उसे चुप रहना और दूसरों की समस्याओं को सुनना सीखना चाहिए ताकि वह उन लोगों की आध्यात्मिक अवस्थाओं को पहचान पाये| तब, उसने अपने स्वयं के विचारों के साथ बोलना शुरू नहीं कर देना चाहिए परंतु उसने प्रार्थना करनी चाहिए कि परमेश्वर उसे प्रार्थना के समय में ही सही शब्द दे दे | यह आवश्यक है कि उसे उन लोगों से मिलना चाहिए जो मसीह के उद्धार से सम्बंधित है, उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उन पर तब तक जब तक कि वे मसीह में मित्र न बन जाये, विश्वास करना चाहिए|

पौलुस ने कहा था कि वह जो अंशदान करता है उसे अंशदान विवेकपूर्वक एवं शांतिपूर्वक करना चाहिए, जरूरत मन्द ब्यक्ति को अपने बारे में या अपनी मदद के बारे में बताए बिना करना चाहिए| यीशु ने कहा था: “तुम्हारे बायीं ओर वाले हाथ को तुम्हारे दायें हाथ के कार्य के बारे में पता नहीं होना चाहिए|” इसलिए अपने सम्मान के लिए सेवा ना करो, परन्तु केवल यीशु के सम्मान के लिए सेवा करो|

यदि कोई व्यक्ति कलीसिया, या कलीसिया की किसी एक समिति की अगुवाई करने का जिम्मेदार है, उसे विरोधी पक्ष, नुक्ताचीनी करने वालो या दूसरे लोगों की मंदगति से प्रभावित नहीं होना चाहिए, बल्कि उनको यह दिखाना चाहिए कि मसीह की सेवा साहस, शक्ति और निरंतर परिश्रम के साथ पूरी की जानी चाहिए| कुछ भी जो प्रेम के बिना किया जाता है, झूठ है|

जैसे इन उपहारों और सेवाओं को संक्षिप्त रूप में यीशु ने कहा था “दयावान बनो, ठीक वैसे जैसे तुम्हारे पिता भी दयावान है” (लुका 6:36)|

पौलुस इस प्रकार के दिव्य विचारों का परिचय हमें देना चाहते है, यह कहकर: “जो कुछ भी तुम करो, पूरे हृदय के साथ करो, जैसे तुम परमेश्वर के लिए कर रहे हो, मनुष्यों के लिए नहीं|” ईसाईयत का उद्देश्य और प्रतीक प्रेम है|

प्रार्थना: ओ आशीषित प्रभु यीशु, हम प्रेम में प्रारम्भक है, और हम अन्य लोगों से दया की आशा रखते है| कृपया हमारे दिमागों में परिवर्तन कीजिए ताकि हम हमें दिए गये उपहारों के साथ सेवा कर पाये; प्रेम, धैर्य, तत्परता, विश्वास, उमंग, और आश्वासन के साथ, हमारे अपने विचारों के साथ नहीं, परन्तु व्यवहारिक रूप से आपकी इच्छा पूरी करे| हमें घमंड से दूर रखना कि हम शैतान के प्रलोभनों में गिरने ना पाये|

प्रश्न:

82. पूर्वोल्लिखित सेवाओं में से कौनसी एक सेवा तुम आज सबसे अधिक आवश्यक मानते हो?

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