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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
चौथा भाग - ज्योति अन्धकार पर विजय पाती है (यूहन्ना 18:1 - 21:25)
अ - गिरिफ्तारी से गाड़े जाने तक की घटनायें (यूहन्ना 18:1 - 19:42)
4. क्रूस और यीशु की मृत्यु (यूहन्ना 19:16-42)

6) यीशु का गाड़ा जाना (यूहन्ना 19:38-42)


यूहन्ना 19:38
“38 इन बातों के बाद अरिमतिया के यूसुफ ने जो यीशु का चेला था, परन्तु यहूदियों के डर से इस बात को छिपाए रखता था, पिलातुस से विनती की कि क्या वह यीशु का शव ले जा सकता है | पिलातुस ने उसकी विनती सुनी, और वह आकार उसका शव ले गया |”

न्यायालय के सभी सत्तर सभासद यीशु को दिए गये दंड से सहमत न थे | हाल की पुरातत्वी खोज से ऐसा पता लगता है कि अपराधी को दंड उसी समय दिया जा सकता है जब कम से कम दो गवाह सहमत न हों | परन्तु यदि सभी सदस्य मृत्यु दंड से सहमत हों तो इस का अर्थ अपराधी के विरुद्ध मानवी पक्षपात होता है और यह बताता है कि न्यायालय ने अन्याय किया है | नियम के अनुसार मुकदमा दोबारा पेश किया जाता और गवाही की छानबीन अधिक सावधानी से की जाती | यह मानते हुए कि यह नियम यीशु के काल में लागु था, और इस का अर्थ यह हुआ कि कम से कम दो सभासदों ने निर्णय का विरोध किया था | उन में से एक अरिमतिया का यूसुफ था जो यीशु का गुप्त चेला था (मत्ती 27:57 और मरकुस 15:43)| उस की विकसित बुद्धि की दाद देनी चाहिये क्योंकि वह न्यायालय में अपना स्थान या राष्ट्र के मामले में अपना प्रभाव खोना न चाहता था | यूसुफ काइफा के अन्याय और न्यायालय की सभा को धोके से चलाने के कारण क्रोधित हुआ | यूसुफ ने तटस्थता को त्याग दिया और खुले आम यीशु के साथ अपनी संगति को स्वीकार किया, परन्तु यह स्वीकार करने में उस ने बहुत देर लगा दी और उस की गवाही न्यायालय के निर्णय को अधिकारिक तौर पर अवैध बताती थी, परन्तु घटनाओं ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि यीशु को क्रूस पर चढ़ाये जाने का निर्णय लिया गया | यीशु की मृत्यु के बाद यूसुफ पिलातुस के पास गया (क्योंकि उसे यह अधिकार प्राप्त था) | पिलातुस ने उस की माँग मान ली और उसे यीशु का शव गाड़ने के लिये क्रूस पर से नीचे उतारने की अनुमति दी |

इस तरह पिलातुस ने यहूदियों से एक बार फिर बदला लिया जो क्रूस पर चढ़ाये हुए अपराधियों के शव हिनोम की घाटी में घसीटते हुए ले जाते थे जहाँ वे जलते हुए कूड़ा-करकट में पड़े रहते थे और जिन्हें गीदड़ निगल जाते थे | परमेश्वर ने अपने पुत्र को ऐसी लज्जा से बचाया | आप ने क्रूस पर दिव्य बलिदान करने की अपनी जिम्मेदारी पूरी की थी | आप के स्वर्गिय पिता ने यूसुफ को सहमत किया कि वह यीशु को सम्मानजनक कब्र में दफन करे |

यूहन्ना 19:39-42
“39 नीकुदेमुस भी, जो पहले यीशु के पास रात को गया था, पचास सेर के लगभग मिला हुआ गन्धरस और एलवा ले आया | 40 तब उन्होंने यीशु का शव लिया, और यहूदियों की गाड़ने के रीति के अनुसार उसे सुगन्ध द्रव्य के साथ कफन में लपेटा | 41 उस स्थान पर जहाँ यीशु क्रूस पर चढ़ाया गया था, एक बारी थी, और उस बारी में एक नई कब्र थी जिस में कभी कोई न रखा गया था | 42 इस लिये यहूदियों की तैयारी के दिन के कारण उन्हों ने यीशु को उसी में रखा, क्योंकि वह कब्र निकट थी |”

अचानक निकुदेमुस भी क्रूस के नज़दीक आ पहुँचा | वह दूसरा सदस्य था जिस ने न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध वोट दिया था | इस से पहले उस ने न्यायालय ने यीशु के विरुद्ध किए हुए गुप्त दंड को रद्द करने का प्रयत्न किया था और सत्य की जांच करने के लिये सभा की छलहीन बैठक बुलाने की माँग की थी (7:51) | यीशु का यह गवाह बत्तीस किलोग्राम बहुमूल्य मलहम और चीरे फाड़े हुए शव को लपेटने के लिये कब्र के कपड़े ले कर आया ताकि शव को क्रूस पर से उतारने और उच्च परिवारों की प्रथा के अनुसार उसे अभिषिक्त कर के दफन करने में यूसुफ की मदद करे | गाड़ने का काम जल्दी करना आवयश्क था ताकि उसे शुक्रवार की संध्या के छटे घंटे से पहले पूरा किया जाता क्योंकि उस समय सब्त की शुरुआत होती है और तब कोई काम करने की मनाई थी | उन के पास केवल थोडा समय बचा था |

हमारे प्रभु यीशु के पिता ने इन दो पुरुषों को अपने मरे हुए पुत्र का सम्मान करने के लिये सहमत किया ताकि यशायाह 53:9 का वायदा पूरा हो जाये कि आप को धनी और कुलीन लोगों के साथ सम्मानीय कब्र में गाड़ा जाये | इस तरह की कब्र किसी चट्टान में तराशना मंहगा काम होता है | इस लिये यूसुफ के पास यीशु का सम्मान करने के लिये इस से बेहतर कोई और मार्ग ही न था कि वह स्वय: अपनी कब्र पेश करता जो शहर की दीवारों से बाहर क्रूस पर चढ़ाये हुए स्थान से नजदीक थी | वहाँ उन्हों ने यीशु के शव को निकुदेमुस ने लाये हुए मलम और इत्र से तर कर के कफन में लपेट कर चट्टान की एक सील पर बगैर शव पेटी के रखा |

यीशु सत्यत: मर चुके थे; आप तैतीस साल के नौजवान ही थे कि आप के दुनियावी जीवन का अन्त हो गया था | आप ने मरने के लिये ही जन्म लिया था | इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं कि कोई अपने प्रियों के लिये अपना प्राण दे |

प्रार्थना: प्रभु यीशु मसीह, हमारे बदले मर जाने के लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं | सभी विश्वासियों के साथ मैं आप पर विश्वास रखता हूँ क्योंकि आप के प्रेम ने हमें परमेश्वर के क्रोध से बचाया और हमें पवित्र त्रिय की एकता में स्थापित किया | मेरे जीवन को आप के लिये धन्यवाद के तौर पर स्वीकार कर लीजिये ताकि मैं आप के क्रूस की प्रशंसा करूं |

प्रश्न:

118. मसीह का दफनाया जाना हमें क्या सिखाता है ?

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