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1. मसीह में बने रहने से बहुत फल आता है (यूहन्ना 15:1-8)
यूहन्ना 15:5
“ 5 मैं दाखलता हूँ: तुम डालियाँ हो | जो मुझ में बना रहता है और मैं उस में, वह बहुत फल लाता है, क्योंकि मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते |”
यीशु ने हमें इतना सम्मान प्रदान किया है कि हम आप के दिल से निकलने वाली डालियों की तरह दिखाई देते हैं | आप ने हम में आत्मिक जीवन निर्माण किया है | जिस तरह दाखलता में पहले छोटी सी टहनी निकल आती है जो धीरे धीरे बढ़ते हुए एक स्वस्थ और लंबी डाली बन कर बड़ा पौधा बन जाती है | इसी तरह विश्वासी सभी लक्षण और मसीही गुणों के साथ निकल आते हैं, जिस के लिये मसीह का धन्यवाद हो | यह केवल हमारे गुण और विश्वास के कारण नहीं होता परन्तु यह सब अनुग्रह पर अनुग्रह के कारण होता है | मसीह में बने रहने के लिये हम ज़िम्मेदार हैं |
इस के सिवाय हम सुसमाचार में एक विशेष मुहावरा, “आप में” पाते हैं जिसका प्रयोग 175 बार किया गया है, और इस से मिलते जुलते मुहावरे, “हम में” का प्रयोग इस से कुछ कम बार किया गया है | नये नियम के अनुसार हर एक विश्वासी का यह अधिकार है कि वह यीशु से मिल कर रहे | यह एकता इतनी दृढ़ है कि हम अपने आप को मसीह में घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए पाते हैं |
हमारे प्रभु हमें विश्वास दिलाते हैं, कि विश्वास करने से हमारी वैयक्तिकता विलुप्त नहीं हो जाती है, हम अन्धविश्वास में ड़ूब नहीं जाते | आप तुम्हारी इच्छा को उत्साहित करते हैं और तुम्हारे जीवन को अपनी आत्मा से परिपूर्ण कर देते हैं | यीशु की यह इच्छा है कि तुम्हारी उन्नती हो और तुम्हें उस ढांचे में ढाल दें जो आप ने शुरू से तुम्हारे लिये तै किया था | आप की संभावनायें और गुण विश्वासियों के दिल में उतर जाते हैं | फिर हमारा विश्वास और हमारा प्रेम कहाँ है?
परमेश्वर के पुत्र का मानव जाती के साथ संयोजन का लक्ष्य क्या है? यीशु ने क्रूस पर अपने प्राण क्यों दिये और पवित्र आत्मा विश्वसियों के दिल में क्यों उंडेला गया था? प्रभु तुम से क्या चाहते हैं? परमेश्वर ने तुम्हें आत्मिक फल उपहार में दिये हैं | आत्मा के उपहार यह हैं: प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता और संयम |
हमें यह जानना चाहिये कि ऐसे गुणोंवाली कोई भी वस्तु हम स्वय: प्राप्त नहीं कर सकते | प्रार्थना, विश्वास और प्रेम तो दूर रहा, हम सांस लेना, चलना, बोलना जैसे काम भी बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं | विश्वास होने के कारण हमें यह विशेष अधिकार है कि हम केवल यीशु से निकलने वाले आत्मिक जीवन का लाभ उठायें | हमारे आत्मिक व्यक्तित्व और हमें दी हुई दिव्य शक्ति और सेवाएं परमेश्वर की ओर से उपहार हैं | उस के बगैर हम कुछ नहीं कर सकते |
यूहन्ना 15:6
“ 6 यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली के समान फ़ेंक दिया जाता, और सूख जाता है; और लोग उन्हें बटोरकर आग में झोंक देते हैं, और वे जल जाती है |”
मसीह में बने रहना तुम्हारा दायित्व है | एक तरफ हम देखते हैं कि आत्मिक जीवन और मसीह मे बने रहना उपहार हैं | दूसरी तरफ हम देखते हैं कि जो कोई मसीह से अलग होजाता है वह उस मनुष्य की तरह हो जाता है जो आत्महत्या कर लेता है | यह अलग हो जाने वाला व्यक्ति कठोर बन जाता है और उसे परमेश्वर के क्रोध की आग में फेंका जाना चाहिए | समय आने पर मसीह से अलग होने वालों को स्वर्गदूत जमा कर के बाहर के अन्धकार में फ़ेंक देंगे | उनके अंत:करण की ड़ांट उन्हें चैन से नहीं रहने देगी | अनन्त काल तक वो करुणामय परमेश्वर से अलग रहेंगे, तब उनको इस बात का अहसास होगा कि पहले वो किस प्रकार परमेश्वर के प्रेम में बने हुए थे | अगर उन्होंने अपने परमेश्वर को त्याग दिया है तो समझो कि उन्होंने अपने उद्धारकर्ता से घ्रणा की है, इसलिये वे निश्चय ही नरक की आग में जलते रहेंगे |
यूहन्ना 15:7
“ 7 यदि तुम मुझ में बने रहो और मेरा वचन तुम में बना रहे, तो जो चाहो मॉंगो और वह तुम्हारे लिये हो जाएगा |”
जो मसीह में बना रहता है वह आप के साथ विचारशील सम्बंध रखते हुए जीता है | जिस तरह पति पत्नी शादी के लम्बे समय के बाद एक दूसरे के विचार और इरादों को जानते हैं उसी तरह जो मसीह से प्रेम करता है वह आपकी इच्छा को जानता है और अपने प्रभु के साथ शान्ति से बना रहता है | प्रति दिन पवित्र शास्त्र का गहराई से अध्ययन करने से हम सारी अच्छी कल्पनाओं से परिपूर्ण हो जायेंगे और हम वही चाहेंगे जो आप चाहते हैं, क्योंकि हमारी अन्दरूनी भावनायें आपके वचन से परिपूर्ण होती हैं |
तब हम अपनी स्वार्थी इच्छाओं के अनुसार प्रार्थना नहीं करेंगे परन्तु परमेश्वर के राज्य की प्रगती को बड़े शौक से सुनेंगे | जहाँ आत्मिक संघर्ष होता है वहाँ हमारा कर्तव्य दूसरों के लिये प्रार्थना करने का हो जाता है | तब हमारे दिल स्तुति और कृतज्ञता से भर जायेंगे और हम पवित्र परमेश्वर को सारे चिंताजनक विषय, ज़रूरतमन्दों और सताए हुए लोगों को प्रस्तुत करेंगे जिस की चेतावनी पवित्र आत्मा हमें देती है | हमारी विश्वास से भरी हुई प्रार्थनाओं के अनुसार यीशु हमारी दुनिया में काम करते हैं | आप हमें अपने उद्धार के काम में सहभागी होने का अवसर देते हैं | क्या तुम प्रार्थना करते हो? और अगर करते हो तो किस तरह करते हो? क्या तुम पवित्र आत्मा की अगवाई से प्रार्थना करते हो? परमेश्वर की इच्छा के कई प्रस्ताव होते हैं | इन में से एक तुम्हारी पवित्रता; दूसरा यह कि परमेश्वर चाहता है कि सब लोग उद्धार पायें और सत्य को जान लें | अगर हम नम्रता से चलते हैं तो इस से परमेश्वर का नाम अभिषिक्त होता है | अपने प्रभु से मांगो कि आप तुम्हारे दिल में प्रार्थना करने वाली आत्मा डाल दें ताकि तुम बहुत फल लाओ और अपने स्वर्गीय पिता और मसीह की महिमा कर सको जो तुम्हारा मार्गदर्शक है |
यूहन्ना 15:8
“ 8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे |”
यीशु यह चाहते हैं कि तुम बहुत फल लाओ | आप तुम्हारे जीवन में केवल साधारण पवित्रता देख कर या केवल कुछ निष्ठावान लोगों को विश्वास लाने की प्रेरणा देने से या तुम्हारे औसत दरजे के धन्यवाद से सन्तुष्ट नहीं होते | नहीं, आप तुम्हारा अभिषिक्त होना चाहते हैं ताकि तुम भी पिता के समान परिपूर्ण बनो और सब का उद्धार हो | अपने आप में सन्तुष्ट न बनो|
प्रार्थना: ऐ प्रभु यीशु, हम आप से प्रेम करते हैं क्योंकि आप हमें अपने सदस्य के रूप में स्वीकार करने से लज्जित नहीं होते | हम चाहते हैं कि जितनों को आपने अपने पास बुलाया है वो सब आप पर विश्वास करें | हम हर एक का नाम आप को बताते हैं | हम विश्वास करते हैं कि आपने अपने क्रूस के द्वारा उनका उद्धार किया है | पवित्र आत्मा के उन पर उतरने से इस बात की पुष्टी होती है | पिता परमेश्वर के नाम की और पवित्र आत्मा में आप के नाम की महिमा हो | आप के बिना हम कुछ नहीं कर सकते |
प्रश्न: