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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
ब - प्रभु भोज के बाद होने वाली घटनायें (यूहन्ना 13:1-38)

3. कलीसिया के लिये नया आदेश (यूहन्ना 13:33-35)


यूहन्ना 13:33
“33 हे बालको, मैं और थोडी देर तुम्हारे पास हूँ : फिर तुम मुझे ढ़ूंढ़ोगे, और जैसा मैं ने यहूदियों से कहा, ‘जहाँ मैं जाता हूँ वहाँ तुम नहीं आ सकते,’ वैसा ही मैं अब तुम से भी कहता हूँ |’”

पिता की आत्मा में महिमा पाने के बाद यीशु हमें हमारे विश्वास के अनेक दृष्टिकोण और मूल आधार के विषय में मार्गदर्शन करते हैं | आप इस समय हमारे साथ केवल शारीरिक रूप में नहीं हैं, परन्तु आप स्वर्ग में रहते हैं | मृत्कों में से जी उठे हुए मसीह दुनिया की महत्वपूर्ण घटना है | जो कोई जीवित मसीह को नहीं जानता या आप पर विश्वास नहीं करता वह अन्धा है और अपने मार्ग से भटक गया है परन्तु जो कोई आप को देखता है वह जीवित रहेगा और अनन्त जीवन पायेगा |

यीशु ने अपने चेलों को सूचित किया कि आप किसी ऐसी जगह जायेंगे जहाँ वो नहीं आ सकते | इस जगह से आप का मतलब सभा का न्यायालय न था, न ही खुली कबर बल्कि आप अपने आस्मान पर उठाये जाने के विषय में कह रहे थे | पिता ने कहा था: “तू मेरे दहने हाथ बैठ जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को अपने पौव की चौकी न बना दूँ |” यीशु तुरन्त अपने अनुयायियों के सामने से गायब न हुए बल्कि उन्हें पहले से ही अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और अपने आस्मान पर उठाये जाने के विषय में कल्पना दी जहाँ कोई व्यक्ति स्वय: प्रयत्न करके प्रवेश नहीं कर सकता था | आप ने यह भविष्यवाणी यहूदियों को भी सुनाई थी परन्तु वे उसे समझ न पाये थे | क्या चेले यह बातें आप के पकड़वाये जाने के समय समझ जायेंगे ? आप ने उन्हें पिता और पुत्र की आराधना में सहभागी किया था ताकि वे शोक और अन्धकारपूर्ण भविष्य में ड़ूब न जायें |क्या वो आप की सत्त्यवादिता पर विश्वास करेंगे कि आप उन्हें त्याग न देंगे ? और यह कि उन का सामूहिक प्रयास कभी असफल न होगा ?

यूहन्ना 13:34–35
“ 34 मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूँ कि एक दूसरे से प्रेम रखो; जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो | 35 यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो |”

यीशु जानते थे कि आप के चेले आप को पूर्णत: समझ न पायेंगे क्योंकि आत्मा अब तक उन पर उंडेला न गया था | वे अन्धे थे और विश्वास रखने की योग्यता न रखते थे, न ही उन में प्रेम करने की इच्छा थी | क्योंकि परमेश्वर प्रेम है और जो कोई प्रेम में स्थित रहता है वो परमेश्वर में स्थित रहता है और परमेश्वर उस में | पवित्र त्रिय प्रेम है | पवित्र त्रिय के तीन व्यक्तियों में जो प्रेम है वह एकता के लिये कारणभूत होता है जो टिकाऊ होता है | यीशु चाहते थे कि पवित्र त्रिय के सिद्धांत मानव जाति में साकार हों और पवित्रता का यह स्त्रोत आप के चेलों में अस्तित्वशाली बने |

इस लिये यीशु ने अपने चेलों को प्रोत्साहित किया कि आप की कलीसिया के सदस्यों में पारस्परिक प्रेम हो | आप ने पुराने नियम के जैसी दस प्रतिबंधक आज्ञायें जारी नहीं कीं बल्कि केवल एक आज्ञा दी जिस में दूसरी सभी दिव्य आज्ञाओं का समावेश था | प्रेम नियम की परिपूर्णता है | जहाँ मूसा नें लोगों को नकारात्मक नियम दिये, वहाँ मसीह हमें सकारात्मक काम करने के लिये प्रेरित करते हैं जिस का स्वय: आप ने उदहारण पेश किया | कलीसिया के जीवन का तत्व, प्रेम है | जहाँ कलीसिया प्रेम का प्रदर्शन नहीं करती वह कलीसिया नहीं रहती |

प्रेम मसीह के व्यक्तित्व का रहस्य है | एक गडरिये की तरह भटकी हुई भेड़ों पर आप को दया आती है | और आप खोई हुई भेड़ों पर दया करते थे | आप ने अपने चेलों को सहनशीलता और कोमलता से सहन किया | मसीह ने प्रेम को अपने राज्य का संविधान बना लिया | जो प्रेम करता है वह मसीह के अनुग्रह में बना रहता है परन्तु जो घ्रणा करता है वह शैतान का हो जाता है | प्रेम कृपालु है और वह फूलता नहीं है | प्रेम धीरजवन्त है और सब की तरह शत्रुओं की भी भलाई चाहता है, ठीक उसी तरह जैसे हमारे प्रेरितों ने अपनी पत्रियों में कई बार इस प्रेम के गुण गाये हैं | परमेश्वर का प्रेम कभी असफल नहीं होता | वह उत्तमता का बंधन होता है |

कलीसिया के लिये प्रेम के लिये बलीदान देने के सिवाय और कोई चिन्ह नहीं है | अगर हम सेवा करने के लिये अपने आप को प्रशिक्षण दें तो हम यीशु के चेले बन जाते हैं | व्यावहारिक प्रेम का अर्थ हम यीशु के मार्गदर्शन से ही जानते हैं | हम आप की क्षमा के कारण जीते हैं और प्रसन्न हो कर दूसरों को क्षमा करते हैं | जब कलीसिया में कोई प्रशंसा के लिये कोशिष नहीं करता और जब सभी सदस्य प्रसन्न होते हैं क्योंकि मसीह की आत्मा ने उन्हें इकट्ठा किया है, वहाँ आकाश धरती पर उतर आता है और हमारे जीवित प्रभु पवित्र आत्मा से परिपूर्ण कलिसियायें कायम करते हैं |

प्रश्न:

88. प्रेम ही मसीहियों की एक मात्र पहचान क्यों है ?

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