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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
तीसरा भाग - प्रेरितों के दल में ज्योती चमकती है (यूहन्ना 11:55 - 17:26)
अ - पवित्र सप्ताह की शुरुआत (यूहन्ना 11:55 - 12:50)

5. लोग न्याय की ओर अपने दिल कठोर कर लेते हैं (यूहन्ना 12:37-50)


यूहन्ना 12:37-41
“ 37 ये बातें कह कर यीशु चला गया और उन से छिपा रहा | 37 उसने उनके सामने इतने चिन्ह दिखाए, तौभी उन्होंने उस पर विश्वास न किया; 38 ताकि यशायाह भविष्यवक्ता का वचन पूरा हो जो उसने कहा: ‘हे प्रभु, हमारे समाचार का किसने विश्वास किया है? और प्रभु का भुजबल किस पर प्रगट हुआ है ?’ 39 इस कारण वे विश्वास न कर सके, क्योंकि यशायाह ने यह भी कहा है: 40 ‘उसने उनकी आँखें अंधी, और उनका मन कठोर कर दिया है; कहीं ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और मन से समझें, और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं !’ 41 यशायाह ने यह बातें इसलिये कहीं कि उसने उसकी महिमा देखी, और उसने उसके विषय में बातें कीं |”

यीशु ने यरूशलेम में प्रेम के इरादे से कई आश्चर्यकर्म किये | कई लोग अपनी इच्छा से आप की शक्ति को जान गये और यह भी जान गये कि आप कहाँ से आये थे | परन्तु तंग नजर लोग जो पुराने विचारों में डूबे हुए थे, यीशु को पहचान न पाये क्योंकि उन्हों ने आप को पेचदार सिद्धांतों और कहरपन के माप से नापा | कई लोगों के दिमाग में उन के असाधारण विचार भरे हुए होते हैं और वो परमेश्वर की आवाज को नहीं सुनते | पवित्र आत्मा अत्यंत नरमी और धीरे से बोलती है जिसे सुनने के लिये दिल से ध्यान देने की आवयश्कता होती है |

परन्तु विद्रोही जो पवित्र आत्मा का विरोध करते हैं, जो सुसमाचार का वचन सुनती है, न केवल अपनी आत्माओं को कठोर बना लेते हैं बल्कि परमेश्वर अपनी न्याय के अनुसार और क्रोध के कारण उनके अन्दर पाई जाने वाली सुनने और देखने की शक्ति निकाल लेता है और इस तरह उन्हें कठोर बना देता है | इस के परिणाम स्वरूप वो अपनी आवश्यकताओं की जानकारी नहीं रख पाते | परमेश्वर उद्धार और न्याय का मार्ग है |

हम देखते हैं कि कुछ परिवार, जनजाती और देश परमेश्वर के क्रोध के अधीन रहते हैं | परमेश्वर उन लोगों को भुला देता है जो उन्हें बार बार सही मार्ग पर बुलाने के प्रयत्न करने पर भी हमेशा के लिये उस से अलग हो जाते हैं | परमेश्वर उन लोगों को कठोर बना देता है जो उस के पवित्र आत्मा की आज्ञा का पालन नहीं करते | वो सब लोग जान बूझ कर परमेश्वर के प्रेम को पाँव तले रौंद देते हैं और मसीह के प्रभाव को अस्विकार करते हैं, वे सज़ा के पात्र ठहरते हैं |

परमेश्वर का उन लोगों के दिलों को कठोर बनाने की कल्पना कोई अनोखी विचारधारा नहीं है बल्कि उस का सम्बंध उस की महिमा से है | इस कल्पना का अर्थ भविष्यवक्ता, यशायाह उस समय समझ पाये जब उन्हों ने सुना कि प्रभु उन्हें लोगों को बचाने के लिये नहीं परन्तु उनके दिलों को कठोर बनाने के लिये भेज रहे हैं (यशायाह 6:1-13) | प्रेम के विषय में प्रवचन देना, परमेश्वर के क्रोध और न्याय की चेतावनी देने से सरल होता है | परमेश्वर का प्रेम पवित्रता, सत्य और न्याय से मिला हुआ होता है | उस की उपस्तिथी में कोई बुराई खड़ी नहीं रह सकती बल्कि वह उस की महिमा की किरणों से भाग जायेगी | यदपि यीशु पवित्र प्रेम हैं जो देहधारी हुए, आप की व्यक्ति लोगों को अलग करती है | यूहन्ना अत्यंत निडर हो कर एलान करते हैं कि जिस व्यक्ति को यशायाह ने सिंहासन पर बैठे हुए देखा वह यीशु हैं क्योंकि परमेश्वर और उसका पुत्र पवित्रता और महिमा में एक हैं |

यूहन्ना 12:42-43
“42 तौ भी अधिकारीयों में से बहुतों ने उस पर विश्वास किया, परन्तु फरीसियों के कारण प्रगट में नहीं मानते थे, कहीं ऐसा न हो कि वे आराधनालय में से निकाले जाएँ; 43 क्योंकि मनुष्य की ओर से प्रशंसा उनको परमेश्वर की ओर से प्रशंसा की अपेक्षा अधिक प्रिय लगती थी|”

सुसमाचार सुनाने वाले यूहन्ना, महायाजक के परिवार में जाने पहचाने हुए व्यक्ति थे (यूहन्ना 18:15) | वो हमें बताते हैं कि जनता, यीशु से दूर रहते हुए भी, कुछ प्रतिष्ठित व्यक्ति आप पर विश्वास करते थे | वे जानते थे कि परमेश्वर आप के साथ था और आप का वचन शक्ति और सत्य से परिपूर्ण था, परन्तु उन्हों ने अपने विश्वास की खुले रूप में गवाही न दी |

ऐसे लोग उन निर्णयों से सहमत क्यों होते हैं जो उनके अंत:करण की आवाज के विरोध में होते हैं |” वो फरीसियों से ड़रते थे और सुरक्षा और लोकप्रियता को सत्य से अधिक पसंद करते थे | फरीसियों ने यरूशलेम वासीयों को धमकी दी थी कि अगर कोई यीशु को सहारा देते हुए पाया गया तो उसे मन्दिर और शहर से निकाल दिया जायेगा | इस लिये यह प्रतिनिधि अपनी प्रतिष्ठा खोना नहीं चाहते थे और ऐसे प्रतिबंध और कष्ट का शिकार होने से हिचकिचाते थे | जो कोई जाती से निकाल दिया जाता था वह लेन देन नहीं कर सकता था, न विवाह कर सकता था और ना ही अपनी जाती के दूसरे लोगों के साथ प्रार्थना कर सकता था | उसे कुष्ट रोगी समझा जाता था जो समाज में अपना रोग फैलाता है |

गुप्त रीती से विश्वास करने पर भी यह प्रतिनिधि स्वीकार क्यों नहीं करते? वो परमेश्वर की तरफ से प्रशंसा पाने से अधिक मनुष्य की तरफ से मिलने वाली प्रशंसा को पसंद करते हैं | परन्तु पवित्र परमेश्वर की स्तुति करना उन का उद्देश न था; वे अपने प्रभु से अधिक स्वय: अपने आप से प्रेम करते थे |

उस व्यक्ति पर अफ़सोस है जो केवल गुप्त रीती से विश्वास करता है और ऐसे कार्य करता है मानो वो यीशु को जानता ही नहीं | ऐसा व्यक्ति अपने प्रभु को खतरे की घड़ी में भी अस्विकार करेगा | वह अपनी सुरक्षा और प्रसिद्धि को परमेश्वर की तरफ से अर्पित आदर और सुरक्षा से बहतर समझता है | अपने प्रभु और मुक्तिदाता को स्वीकार करो और विश्वास करो कि आप अपनी रूचि के अनुसार तुम्हारा मार्गदर्शन करेंगे |

यूहन्ना 12:44-45
“44 यीशु ने पुकार कर कहा, ‘जो मुझ पर विश्वास करता है, वह मुझ पर नहीं वरन मेरे भेजने वाले पर विश्वास करता है | 45 और जो मुझे देखता है, वह मेरे भेजने वाले को देखता है |’”

यीशु ने कठोर शब्दों में अपनी शिक्षा का सारांश पेश करते हुए अपने लोगों को पश्चताप करने के लिये कहा परन्तु साथ ही साथ आत्मिक लोगों को वही शिक्षा साधारण शब्दों में दी | शुरू में इस में प्रतिवाद दिखाई दिया मानो आप यह कह रहें हों, “जो मुझ पर विश्वास करता है वह मुझ पर विश्वास नहीं करता |” यीशु किसी भी व्यक्ति को स्वय: अपने आप ही से जकड कर नहीं रखते थे बल्कि पुत्र अपने सभी अनुयायियों को सरल पिता की ओर मार्गदर्शित करता है | आप स्वय: अपने आप को सभी विशेष अधिकारों से वंचित कर लेते हैं | आप यह अपेक्षा भी नहीं रखते कि सब लोग केवल आप पर ही विश्वास करें | पुत्र, पिता को लोगों के विश्वास से वंचित नहीं करता | इसलिये आप परमेश्वर की दिव्यता में से कुछ भी नहीं लेते बल्कि उसे प्रगट करते और उसकी सर्वदा प्रशंसा करते रहते हैं |

इस के विरुद्ध स्तिथी भी सत्य है | कोई भी व्यक्ति पुत्र के द्वारा ही पिता तक पहुँच सकता है | जब तक पुत्र पर विश्वास नहीं किया जाता तब तक पिता पर विश्वास करना असंभव है | पिता ने सभी विश्वासियों को आप को सौंप दिया है ताकि वे आप के विशेष लोग बनें और आप को सभी दिव्य गुणों से सजाया | इस लिये नम्र पुत्र घमंड़ न करते हुए निश्चय पूर्वक कह सकता है कि: “जिस ने मुझे देखा है उस ने मेरे भेजने वाले को भी देखा है |” यीशु परमेश्वर की ओर से भेजे हुए असली प्रेरित हैं जो परमेश्वर की शक्ति और महिमा के मालिक हैं इस लिये आप का आज्ञाकारी होना अत्यंत आवयशक है | यीशु, दिव्य जीवन,ज्योति और वैभव के तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं | हम किसी और परमेश्वर को नहीं जानते सिवाय उस के जिस का उधारण यीशु ने अपने जीवन और पुनरुत्थान में प्रगट किया | आप की नम्रता ने आप को पिता के स्थर तक उठा लिया | सच तो यह है यशायाह भविष्यवक्ता ने जिसे देखा वह व्यक्ति स्वय: यीशु थे क्योंकि पिता और पुत्र में कोई असमानता नहीं है |

यूहन्ना 12:46-48
“46 मैं जगत में ज्योति होकर आया हूँ, ताकि जो कोई मुझ पर विश्वास करे वह अन्धकार में न रहे | 47 यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ | 48 जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहराने वाला तो एक है: अर्थात जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा |

आफ्रिका के कुछ गांवों में प्लेग की भयंकर महामारी फैलती है | ज्वर के करण लोग जंगल में अपनी झोपडियों में करवटें बदलते रहते हैं | जो डॉक्टर गांव में जांच के लिये गया था उस ने जान लिया कि अगर रोगी सूर्य प्रकाश में चले तो इस प्लेग के जन्तु मर जायेंगे | इस लिये वह जोर से बोला: “अपनी झोपडियों में से बाहर निकल आओ और चंगे हो जाओ | यह जन्तु धूप में मर जायेंगे |” कई लोग बाहर सूर्यप्रकाश में निकल आये और चंगे हो गये | दूसरों ने पीड़ा के करण डॉक्टर पर विश्वास नहीं किया | वे झोपडियों के अन्दर ही रहे और मर गये | डॉक्टर और कुछ और लोगों ने जो चंगे हो चुके थे, कुछ लोगों को देखा जो मरने के करीब थे और उन से पूछा: “तुम बाहर धूप में क्यों न गये?” उन्हों ने उत्तर दिया, “हम पर श्राप है; हम ने तुम्हारे शब्दों पर विश्वास नहीं किया क्योंकि वह बहुत आसान लगते थे | हम बीमार थे और थक गये थे |” डॉक्टर ने उत्तर दिया: “तुम प्लेग के करण नहीं परन्तु मेरे शब्दों पर विश्वास न करने के करण मरोगे |"

यह उधारण यीशु की शक्ति को स्पष्ट करता है | आप धार्मिकता के सूर्य हैं, जो पाप के अन्धकार पर चमकता है, और दुष्ट के स्तोत्र पर विजय पाते हैं | जो कोई आप के आश्चर्यजनक प्रकाश में प्रवेश करता है वह उद्धार पाता है | आप का और कोई उद्देश ही नहीं सिवाय मानव जाती को पाप और मृत्यु से मुक्त करना | आप का वचन हमें नाश करने वाली सभी शक्तियों से मुक्त करता है | जो कोई आप का वचन सुनता है, उस पर विश्वास करके उसे स्वीकार करता है वह आप के पास आकार आप की आज्ञा का पालन करता है और अनन्त जीवन पाता है | मृत्यु को उस के ऊपर कोई अधिकार न होगा |

परन्तु जो कोई आप का वचन सुनता है और उसे अपने दिल में जगह नहीं देता वह पाप में डूब जायेगा और सज़ा पायेगा और बाहर के अन्धकार में चला जायेगा | इस तरह सुसमाचार अविश्वासियों के लिये न्यायधीश और उस के नाश का कारण बन जाता है | क्या तुम ने यीशु को अपना मुक्तिदाता स्वीकार किया है? क्या तुम ने आप का वचन याद कर लिया है और उसके अनुसार जीने का निर्णय लिया है?

यूहन्ना 12:49-50
“49 क्योंकि मैं ने अपनी ओर से बातें नहीं कीं; परन्तु पिता जिसने मुझे भेजा है उसी ने मुझे आज्ञा दी है कि क्या क्या कहूँ और क्या क्या बोलूँ? 50 और मैं जानता हूँ कि उसकी आज्ञा अनन्त है | इसलिये मैं जो कुछ बोलता हूँ, वह जैसा पिता ने मुझ से कहा है वैसा ही बोलता हूँ |”

यीशु परमेश्वर का वचन हैं | जब हम यीशु का प्रवचन सुनते हैं तब केवल परमेश्वर के विचार और इच्छायें सुनते हैं | मसीह तुम्हारे लिये परमेश्वर का सरल संदेश हैं | पुत्र, पिता की आज्ञा मानते थे, आप अपने पिता की आवाज़ सुनते थे और उस का मनुष्य की भाषाओँ में अनुवाद करते थे | परमेश्वर आप के द्वारा दोषी दुनिया से बात करता है, मानो यह कहता हो, “मैं अनन्त परमेश्वर हूँ और तुम्हारा पिता बनुंगा; और अनुग्रह से तुम्हें अनन्त जीवन प्रदान करूँगा | तुम परमेश्वर के क्रोध और नष्ट होने के पात्र हो परन्तु मैं तुम से प्रेम करता हूँ | मैं ने अपने पवित्र पुत्र को तुम्हारे बदले बलीदान किया ताकि तुम धार्मिक ठहरो और पवित्र आत्मा पाओ | तुम मरोगे नहीं | मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे मसीह के हाथों से अनन्त जीवन पाओ | जो ऐसा न करेगा वह स्वर्ग और सत्य जीवन् नहीं पाएगा |” इन शब्दों के द्वारा परमेश्वर दुनिया को मुफ्त उद्धार देता है | परन्तु जो मसीह को भूलता है और आप को अस्विकार करता है वह अथाह गढ़े में गिर जाएगा क्योंकि उस ने जीवन पाने के लिये परमेश्वर की आज्ञा को अस्विकार किया |

प्रार्थना : ऐ पिता, हमें अनन्त जीवन देने के लिये हम आप का धन्यवाद करते हैं | हम प्रसन्नता के साथ तेरी प्रशंसा करते हैं | तू ने हमें मृत्यु से जीवन में और पाप की दुनिया से अपने प्रेम में ले आया | तेरे पुत्र का वचन हमारे अन्दर सुरक्षित रख और उसे हमारे दिल और मन में स्तिथ कर | ताकि हम फल लायें | अपने सुसमाचार द्वारा बहुत से लोगों का नवीकरण कर | तेरा वचन दूसरों तक पहुचाने की हमें शिक्षा दे ताकि वो जीयें और मरें नहीं |

प्रश्न:

84. मसीह में सब के लिये परमेश्वर का आदेश क्या है ?

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