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यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
4. लाज़र का जिलाया जाना और उसका परिणाम (यूहन्ना 10:40 – 11:54)

3) लाज़र का मृतकों में से जी उठाना (यूहन्ना 11:34-44)


यूहन्ना 11:45
“45 तब जो यहूदी मरियम के पास आए थे और उसका यह काम देखा था, उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया |

लाज़र मृत्यु के पश्चात् पुनर्जीवित होकर खाने, पीने और बोलने लगा | लोग उस से सड़कों पर और घरों में जीवित देखते थे और उस से मिलते थे | बहुत से लोग यीशु की भव्यता पर चकित हुए और विश्वास किया कि आप मसीह, जीवित परमेश्वर के पुत्र हैं | इस प्रकार चेलों की संख्या बढ़ती गई और लोग मरियम के घर लाज़र को यीशु के साथ देखने को चल पड़े | वे लाज़र को देखने आये थे परन्तु यीशु पर विश्वास करके वापस लौटे |

यूहन्ना 11:46-48
“46 परन्तु उनमें से कुछ ने फरीसियों के पास जाकर यीशु के कामों का समाचार दिया | 47 इस पर प्रधान याजकों और फरीसियों ने महासभा बुलाई, और कहा, ‘हम करते क्या हैं ? यह मनुष्य तो बहुत चिन्ह दिखाता है | 48 यदि हम उसे यों ही छोड़ दें,तो सब उस पर विश्वास ले आएँगे, और रोमी आकार हमारी जगह और जाति दोनों पर अधिकार कर लेंगे |”

जिन लोगों ने यह आश्चर्यकर्म देखा था उन में से कुछ लोग जल्दी से फरीसियों के पास पहुँचे ताकि उन्हें यीशु के कामों का समाचार दें | वो अब तक अविश्वासी थे | धनी मनुष्य के दृष्टान्त में उनके विरुध प्रभु के न्याय का इशारा किया गया है | उस धनी आदमी को अब्राहम ने उत्तर दिया था, “जब वो मूसा और भविष्यवक्ताओं की नही सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई जी भी उठे तौ भी उसकी नहीं मानेंगे |” (लूका 16:31) परमेश्वर का आत्मा पत्थर दिलों को नहीं बदल सकता जो यीशु पर विश्वास करने से इन्कार करते हैं, चाहे उन्हें कितने ही प्रभावशाली चमत्कार दिखाए जायें |

फरीसियों का धार्मिक विधान सभा में काफी प्रभाव हुआ करता था | यहाँ तक की महायाजक उनके आग्रह को पूरा करते थे | इस विषय पर विचार विनिमय करने के लिये सत्तर सदस्यों को बुलाया गया | सदूकियों ने, जो पुनरुत्थान को अस्वीकार करते थे, इस सभा का स्वागत किया | सदस्य कोई निर्णय न ले सके बल्की परेशान हो गये क्योंकी यीशु ने कोई विशेष पाप नहीं किया था जिस के कारण आपको गिरिफ्तार किया जाता | जो भी हो, फसह से पहले राजधानी में हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री उमड़ पड़ते थे तब जनसाधारण में मसीही नवीकरण शुरू हुआ | जब बहस शुरू हुई तब सभा के सदस्यों ने यीशु को केवल साधारण व्यक्ती कहा, परमेश्वर का व्यक्ती या भविष्यवक्ता भी नहीं कहा | इस पर भी वे आपके आश्चर्यजनक चमत्कारों को बरखास्त न कर सके | कार्यवाही के समय सभा में डर का वातावरण छाया हुआ था | उनको डर था कि कहीं शाही अधिकारियों को इस मामले की खबर न लग जाये और वो इसमें हस्तक्षेप करें | मसीह की तरह आश्चर्यकर्म दिखाने वाले व्यक्ती के चारों तरफ इतनी बड़ी भीड़ के जमा होने से बगावत का डर था | इस पर रोमी सरकार मंदिर को बन्द कर देती जो परमेश्वर का निवास स्थान था | इस के बाद मंदिर में की जाने वाली सेवाएं जैसे बलिदान, प्रार्थना और आशीर्वाद बन्द हो जातीं |

यूहन्ना 11:49-52
“49 तब उनमें से काइफा नामक एक व्यक्ति ने जो उस वर्ष का महायाजक था, उनसे कहा, ‘तुम कुछ भी नहीं जानते; 50 और न यह समझते हो कि तुम्हारे लिये यह भला है कि हमारे लोगों के लिये एक मनुष्य मरे, और सारी जाति नष्ट न हो |’ 51 यह बात उसने अपनी ओर से न कही, परन्तु उस वर्ष का महायाजक होकर भविष्यवाणी की, कि यीशु उस जाति के लिये मरेगा; 52 और न केवल उस जाति के लिये, वरन इसलिये भी कि परमेश्वर की तितर-बितर सन्तानों को एक कर दे |

जब सभा में अव्यवस्था और तीव्र कोलाहल चोटी पर पहुँचा तब महायाजक काइफा खड़ा हुआ और राष्ट्र के नेताओं की आलोचना करने लगा | उन पर अज्ञानता और विचारहीनत: का दोष लगाया | महायाजक होने के कारण वो सभा का सभापति था इस लिये उसे यह सब कहने का कुछ अधिकार था | उसका तेल लगा कर अभीशेक किया गया था , जो पवित्रता का चिन्ह है परन्तु वो मसीह के विरुध था | वो पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो ऐसी आशा की जाती थी ताकि परमेश्वर उसके द्वारा राष्ट्र के नेता समान बोलता | महायाजक की पदवी के साथ भविष्यवक्ता की भूमिका जुड़ी होती है फिर भी उसने भूल की और मनमौजी की तरह किया और सभी लोगों को अज्ञान बताया |

जिस तरह की आत्मा काइफा के मुँह से बोली वह तुरन्त प्रकट हो गई क्योंकी शैतान उस में से बोला | दिखावटी तौर पर वह शब्द परमेश्वर का उद्देश जताते थे परन्तु वे परमेश्वर की इच्छा के विरुध थे | इस में संदेह नहीं कि यह ठीक होता जो लोगोंकी जगह परमेश्वर का मेमना मारा जाता ताकि वो परमेश्वर के क्रोध से बच जाते और अनन्त जीवन पाते | परन्तु शैतान का संवाददाता राजनीतिक दृष्टिकोण से ऐसे विचार अभिव्यक्त कर रहा था, “यीशु को मरने दिया जाये ताकि हम रोमियों के क्रोध से बच सकें |” इस शैतानी भविष्यवाणी से यीशु के शब्द उचित ठहरते हैं कि शैतान बहुत से यहूदियों का आत्मिक पिता है क्योंकी शैतान झूठा है और झूठ का पिता है |

तथापि, इस शैतानी मनोवृति में यूहन्ना ने देखा कि काइफा ने शैतानी महत्वकांक्षा व्यक्त की जो दिव्य सत्य था | काइफा को यह समझाना था कि यीशु की मृत्यु सब लोगों के लिये अप्राधमुक्ती था, परन्तु उसे अपने अधिकृत शब्दों का अंदाज़ नहीं था | सच पूछो तो वो अज्ञान और लापरवाह व्यक्ती काइफा था क्योंकी उसने यीशु पर विश्वास नहीं किया था परन्तु पवित्र आत्मा ने उसे यीशु की मृत्यु के बारे में जो लोगों के पाप मुक्ती के लिये बलिदान थी, एक वाक्य कहने के लिये मार्गदर्शन किया था | वह स्वय: अपने शब्दों का अर्थ समझने में असमर्थ था क्योंकी वो कहना कुछ और चाहता था परन्तु बोला कुछ और |

प्रचारक यूहन्ना ने इस विवरण का अर्थ बड़े पैमाने पर लिया कि यह शब्द दुनिया के उद्धार की तरफ इशारा करते हैं | यीशु केवल अपने लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिये नहीं मरे परन्तु राष्ट्रों के सभी विश्वासियों के लिये मरे | वो सब जो आप पर विश्वास करते हैं परमेश्वर की सन्तान हैं इस लिये उद्धारकर्ता पर विश्वास करने से उन्हें अनन्त जीवन प्राप्त होता है |

हमारे विश्वास का लक्ष केवल हमारा उद्धार ही नहीं परन्तु परमेश्वर की सभी संतानों की एकता में है कि वो सब यीशु में एक हों | आपका प्रेम मसीही धर्म का चिन्ह और शक्ती है | आप का नाम आपके अनुयायियों को एकजुट रखता है | जब कभी वे अपने केन्द्र (यीशु) से जुड़ जाते हैं तब वे एक दूसरे से भी जुड़ जाते हैं | आईये हम जाग जाएँ और जल्दी से आप की ओर लौट चलें और यह जान लें कि हम परमेश्वर के परिवार में भाई और बहिनें हैं और यह संबन्ध सांसारिक संबन्ध से अधीक घनिष्ठ होता है |

यूहन्ना 11:53-54
“53 अत: उसी दिन से वे उसे मार डालने का षडयंत्र रचने लगे | 54 इसलिये यीशु उस समय से यहूदियों में प्रगट होकर न फिरा, परन्तु वहाँ से जंगल के निकटवर्ती प्रदेश के इफ्राइम नामक एक नगर को चला गया; और अपने चेलों के साथ वहीं रहने लगा |”

सभा के कुछ सभासद काइफा की कठोर भविष्यवाणी से तंग आ गये थे क्योंकी उन्हें यीशु से सहानुभूती थी परन्तु अधिकतर सभासद प्रसन्न थे कि परमेश्वर ने काइफा के द्वारा बोल कर उस धोकेबाज को मृत्यु दंड देकर राष्ट्र को बचाया | सभा ने सहमती से यह दंड स्वीकार किया और काइफा के यीशु को हत्त्या करने के सुझाव को स्वीकार किया | इस में संदेह नहीं कि जोलोग वहाँ उपस्थित थे, जो ज्यादा धार्मिक भी थे,उन में से कुछ लोगों ने विरोध किया लेकिन किसी ने उन की न सुनी | चालाक काइफा ने उन्हें बहका कर गुप्त रीती से हत्त्या करने की योजना पेश की ताकि लोगों में बल्वा न हो |

यीशु को इस गुप्त योजना का पता चला या कदाचित आप को इस की दिव्य दृष्टि से जानकारी हो चुकी थी | आप तुरन्त यहुदियोंके अधिकार क्षेत्र से बाहर चले गये और नबलूस के पूर्व में यरदन की वादी के क्षेत्र में जा बसे जहाँ आप अपने चेलों के साथ अपने बलिदान और पुनरुत्थान के समय की प्रतीक्षा करने लगे |

लड़ाई का मैदान साफ था | मन्दिर की सफाई के बाद आप का याजकों से झगड़ा, व्यवस्था के न्यायशास्त्रियों से विवाद और विश्राम के दिन चंगा करने का परिणाम अब लाज़र के जिलाए जाने से शिखर को पहुँच गया | इस लिये लोगों के नेताओं ने स्वय: अपने शुभचिंतक की तुरन्त हत्त्या करने का निश्चय किया |

ज्योति अन्धकार में चमकती है और अन्धकार ने उसे ग्रहण न किया | प्रिय बंधु, क्या तुम ने देखा है कि मसीह ज्योति हैं ? क्या आपके सुसमाचार ने तुम्हारे मन को उज्वलित किया है और तुम्हारे दिलों का नवीकरण किया है ? क्या आप का अनन्त जीवन तुम पर आ चुका है और क्या आप की आत्मा ने तुम्हें क्षमा मांगने और अपने पापों को स्वीकार करने के लिये प्रेरणा दी है और क्या तुम में विश्वास निर्माण किया है ताकी तुम आशीष पाओ और पवित्र बनो ? अपने दिल के दरवाज़े खोल दो ताकि मसीह का आत्मा तुम्हें निकाल ले और तुम्हारा जीवन और भविष्य मसीह के लिये अर्पित कर दे ताकि तुम अपनी इच्छा के विरुद्ध यीशु के शत्रुओं के साथ उन्हों ने आप के विरुद्ध किये हुए निर्णय में सहमत न हो जाओ बल्कि आप के चेलों के साथ मिल कर पवित्र प्रभु को जान लो ताकि तुम स्वीकार करो कि हम ने आप में पिता के एकलौते पुत्र की सी महिमा देखी जो अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण था |

प्रार्थना : हे प्रभु यीशु मसीह, हम आप को धन्यवाद देते हैं क्योंकि आप ने संकट की घड़ी में भी सत्य से इन्कार नहीं किया; आप ने हमेशा अपने स्वर्गीय पिता को महिमा दी | हमारे कमज़ोर विश्वास और अवहेलना के लिये हमें क्षमा कीजिये | हमें आप अपने पिता के साथ संगती में ले लीजिये ताकि हम अनन्त जीवन पायें और सदा आप की सेवा करते रहें | आपके महिमायुक्त अनुग्रह की स्तुती के लिये हमारे जीवन स्वीकार कीजिये |

प्रश्न:

79. यहूदियों की सभा ने यीशु की हत्त्या क्यों की ?

प्रश्नावली - भाग 3

प्रिय पढ़ने वाले भाई,
अगर तुम हमें इन 24 में से 20 प्रश्नों के सही उत्तर लिख कर भेजोगे तो हम तुम्हें इस अध्ययन माला का अगला भाग भेज देंगे |

63. यीशु ने यहूदियों को कैसे सिद्ध करके दिखा दिया कि वो अब्राहम की सन्तान नहीं हैं?
64. शैतान के वह कौन से गुण हैं जो यीशु ने हमें साफ तौर से बता दिये हैं?
65. यहूदी आप पर पत्थर क्यों फेकना चाहते थे?
66. यीशु ने उस जन्म के अंधे व्यक्ती को चंगा क्यों किया?
67. यहूदियों ने जन्म के अंधे व्यक्ती की चंगा होने की संभावना से इन्कार क्यों किया?
68. अपनी इस पूछ ताछ के बीच उस नौजवान ने धीरे धीरे क्या जान लिया?
69. यीशु के सामने नमन करने का क्या अर्थ होता है?
70. यीशु अपनी भेड़ों पर कौन सी आशीषें प्रदान करते हैं?
71. यीशु अच्छे चरवाहे कैसे बने?
72. मसीह अपने गल्ले का मार्गदर्शन कैसे करते हैं?
73. यीशु ने अपनी दिव्यता की घोषणा कैसे की?
74. लाज़र की मृत्यु के बावजूद यीशु ने परमेश्वर की महिमा की बात क्यों कही?
75. लाज़र को बचाने के लिये यीशु विजेता समान आगे क्यों बढ़े?
76. आज हम मृत्यु के बाद कैसे जी उठते हैं?
77. यीशु चिन्तित क्यों हुए और आप क्यों रोये?
78. लाज़र के जिलाए जाने में परमेश्वर की महिमा किस तरह दिखाई दी?
79. यहूदियों की सभा ने यीशु की हत्त्या क्यों की?

अपना नाम और पता साफ़ अक्षरों में लिख कर अपने उत्तरों के साथ इस पते पर भेजिये |

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