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Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
चौथा भाग - ज्योति अन्धकार पर विजय पाती है (यूहन्ना 18:1 - 21:25)
अ - गिरिफ्तारी से गाड़े जाने तक की घटनायें (यूहन्ना 18:1 - 19:42)
1. यीशु की बाग में गिरिफ्तारी (यूहन्ना 18:1-14)यूहन्ना 18:1-3 यीशु ने प्रार्थना के द्वारा अपने पिता से बातचीत की और अपना और अपने प्रेरितों और अनुयायियों का जीवन परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया | इस बिदाई प्रार्थना के साथ आप ने अपना वचन, सेवायें और प्रार्थनायें समाप्त कर लीं | तब आप ने पीड़ा और यातना के नये दौर में प्रवेश किया ताकि दुनिया के पाप उठा कर परमेश्वर के मेमने का कर्तव्य पूरा कर सकें | इस लिये आप ने किद्रोन नदी के उस पार जैतून के पहाड़ पर दीवारों से घिरे हुए एक बाग़ में प्रवेश किया जहाँ अंगूर का रस निकलने की एक मशीन लगी हुई थी | यीशु और आप के चेले इस स्थान को शरणस्थल और एकांत स्थान के समान उपयोग में लाते थे और जहाँ आप प्राय: सोया भी करते थे | यहूदा को इस गुप्त शरण स्थान की जानकारी थी और उस ने यहूदी अधिकारीयों को सुचना दी कि यीशु कहाँ है | वह प्रसन्न हुए और मन्दिर के सिपाहियों और फरीसियों के प्रतिनिधियों को इकठ्ठा किया | उन्हें रात के समय किसी को हिरासत में लेने या रोमी अधिकारीयों की सहमति के बगैर हथियार ले जाने का अधिकार न था | तथपि उन्हों ने रोमी गव्हर्नर को सूचित किया था | यहूदी नेता यहूदा की दी हुई सूचना से सन्तुष्ट न थे बल्कि उन्हों ने उसे मसीह को गिरिफ्तार करने जा रहे सिपाहियों की टोली का मार्गदर्शन करने पर मजबूर किया | इस लिये यहूदा केवल विश्वासघाती ही न था बल्कि उस ने यीशु को आप के शत्रुओं के हाथों में सौंप भी दिया | परमेश्वर न करे कि वह पुत्र को पकड़वाने वाले के रूप में ढाले और लोगों को क्रूस पर चढ़ाये हुए मसीह के विषय में शंका में डाले | परमेश्वर ऐसे धोकेबाजी से ऊपर है | यूहन्ना 18:4-6 हमें यह कल्पना नहीं कि यह आक्रमणकर्ता बाग़ में कैसे घुस आये | उनके पास संभवता बहुत से लालटेन थे ताकि यदि आप बच कर निकल जाने का विचार करते तो वे आप को ढूंढ निकालते | यीशु प्रार्थना करने में व्यस्थ थे और चेले सो रहे थे | प्रार्थना करते समय आप ने उस टोली को पकड़वाने वाले के साथ अपनी ओर आते देखा | आप ने बच कर भाग जाने का प्रयत्न न किया यधपि आप जानते थे कि आप को कड़ा दंड सुनाया जाएगा और कष्ट पहुँचाया जायेगा | आप को हर चीज की जानकारी थी और आप पिता के आज्ञाकारी थे | आप उठे और अपनी प्रभुसत्ता को कायम रखते हुए आगे बढ़ती हुई उस टोली का आत्मसमर्पण नहीं करवाया बल्कि प्रभु ने स्वय: हमारे कारण आत्मसमर्पण किया | आप ने उन से पूछा : “तुम किसे ढ़ूँढ़ते हो?” जब उन्होंने आप का नाम बताया तब आप ने दिव्य शब्दों में उत्तर दिया : “वह मैं हूँ !” जिस व्यक्ति के पास आत्मिक सूक्ष्मदृष्टि है वह तुरन्त जान जायेगा कि परमेश्वर मसीह में होकर स्वय: लोगों के बीच में खड़ा था और जैसे उस ने मूसा से कहा था वैसे ही इन से भी कहा कि “मैं हूँ | क्या तुम सच में अपने उद्धारकर्ता की हत्या करना चाहते हो ? वह मैं हूँ, ख़बरदार रहो और सोचो कि तुम क्या कर रहे हो | मैं जो विधाता और उद्धारकर्ता हूँ, तुम्हारे सामने खड़ा हूँ |” पूरे समय यहूदा वहाँ खड़ा था और यह शब्द उस के दिल को छेद चुके थे | यह आखिरी समय है जब यूहन्ना के सुसमाचार में उस का वर्णन किया गया है | यूहन्ना, यहूदा के चूमने का वर्णन नहीं करते और न यह बताते हैं कि उस ने आत्महत्या कैसे की | यूहन्ना की का प्रथम उद्देश यीशु थे जिन्हें आप ने एक महान व्यक्ति के रूप में आप के शत्रुओं के सामने प्रगट किया | यीशु के नम्रतापूर्वक स्वेच्छा से आत्म समर्पण करने से यहूदा का दिल छिद गया क्योंकि यीशु मरने के लिये तैयार थे | यह उत्तर सुन कर यहूदा और सिपाहियों की टोली यीशु की महानता की उपस्थिति में घबरा कर पीछे हट गए | वह अपराधी को गिरिफ्तार करने के संघर्ष के लिये हथियारों से सुसज्जित थे | जिस तरह प्रायश्चित के दिन महायाजक अपने गौरवपूर्ण व्यक्तित्व में आगे बढ़ता है उसी तरह आप उन के पास पहुँचे और कहा, “मैं वही हूँ जिसे तुम ढ़ूँढ़ रहे हो |” यह सुन कर वे जमीन पर गिर गए और यीशु वहाँ से बच कर निकल सकते थे परन्तु आप वहीं उन के पास खड़े रहे | यूहन्ना 18:7-9 मसीह ने अपने आक्रमनकर्ताओं का ध्यान अपनी ओर खींच लिया | उस में से कुछ आप के चेलों को गिरिफ्तार करने को थे परन्तु यीशु अपने शत्रुओं के सामने खड़े हो कर स्वय: अपना सीना न बचाते हुए अपने चेलों को बचाने का प्रयत्न करने लगे | आप अच्छे चरवाहे हैं जो अपनी भेड़ों के लिये अपने प्राण देता है | आप ने सिपाहियों को आज्ञा दी कि वे आप के अपने चेलों को अकेला छोड दें | आप की भव्यता देख कर वह काँप उठे और आप की आज्ञा का पालन किया | आप ने फिर कहा, “मैं वही हूँ, मानो यह कह रहे हों कि : “जीवन की रोटी मैं हूँ; दुनिया की ज्योति मैं हूँ, दरवाजा मैं हूँ, अच्छा चरवाहा मैं हूँ, मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ, मैं नियुक्त किया हुआ उद्धारकर्ता हूँ | परमेश्वर मनुष्य के रूप में तुम्हारे सामने खड़ा है |” यीशु के इस शब्द का अर्थ यह है कि परमेश्वर नियुक्त करता है और उद्धार करता है | इस दिव्य सहायता को यहूदियों ने अस्विकार किया | वह न चाहते थे कि एक विनम्र नासरी उन का मसीह हो | यूहन्ना 18:10-11 पतरस अपने प्रभु को समझ न पाया न ही आप के वचन पर ध्यान दिया | वह सो रहा था और अब जाग उठा था और नींद का नशा अब भी उस पर छाया हुआ था | उस ने सिपाहियों को देखा और क्रोध मे आ गया, और अपनी तलवार, जिसे साथ ले जाने की यीशु ने उसे अनुमति दी थी, म्यान में से खींच ली और अपने प्रभु की आज्ञा के बिना महायाजक के सेवक पर चलाई | उस सेवक का कान कट गया | केवल यहुन्ना इस घटना का वर्णन करते हैं वह भी उस समय जब पतरस को मर के बहुत समय बीत चुका था | यीशु ने अपने मुख्य चेले को आज्ञा दी कि वह अपनी तलवार को म्यान में रखें ताकि और खून न बहाया जाए और कोई चेला गिरिफ्तार न हो | यहुन्ना ने अपने लिखे हुए सुसमाचार में इस आज्ञा पर प्रकाश डाला है | तब यीशु ने अपने चेलों से परमेश्वर के क्रोध के उस प्याले का वर्णन किया जिसे आप ने प्रार्थना के समय स्वीकार किया था | इस घोषणा को हम उस आत्मिक संघर्ष के संदर्भ में कहा हुआ वचन समझते हैं जो आप की गिरिफ्तारी से पहले आप के आत्मा में हो रहा था | हम जानते हैं कि हमारे कारण सब सजा अपने ऊपर ले कर आप क्रोध को सहन करने के लिये तैयार थे | वह प्याला सीधा आप के पिता के हाथ से आया है | इस तरह आप सब से कड़वा प्याला उस के हाथों से लेते हैं जो आप को बहुत प्रिय है | यह आप प्रेम के सिवा सहन न कर सकते क्योंकि पिता और पुत्र मानव जाती के उद्धार में एक हो जाते हैं | क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया | प्रार्थना: हे पिता, हम तेरी आराधना करते हैं क्योंकि तेरा प्रेम हमारी समझ से बाहर है | तु ने अपना पुत्र हमारे लिये अर्पण किया | हे पुत्र, आप की दया, भव्यता और मरने की तैयारी के कारण हम आप की आराधना करते हैं | आप उस बाग़ से बच कर न निकले बल्कि अपने चेलों को बचाया और अपने शत्रुओं के सामने आत्मसमर्पण किया | हम आप के संयम, आप की दया और धार्मिकता के लिये आप का धन्यवाद करते हैं | प्रश्न: 110. बाग़ के दरवाजे पर यीशु ने स्वय: अपने आप को अपने शत्रुओं के सामने जिस तरह प्रगट किया उस का क्या अर्थ होता है ?
प्रश्नावली - भाग 6प्रिय पढ़ने वाले भाई, 94: यीशु सच्ची दाखलता कैसे बन जाते हैं?
95: हम यीशु में और आप हम में क्यों हैं?
96: यीशु ने उन लोगों को अपने प्रिय कैसे बनाया जो पाप की दासता में थे ?
97: दुनिया मसीह से और आप से प्रेम करने वालों से घ्रणा क्यों करती है?
98: जिस दुनिया ने मसीह को क्रूस पर चढ़ाया उस का परमेश्वर कैसे सामना करताहै?
99: मसीह पर विश्वास करने वालों से दुनिया घृणा क्यों करती है?
100: पवित्र आत्मा दुनिया में क्या काम करता है ?
101: दुनिया की प्रगति में पवित्र आत्मा कैसे काम करता है?
102: पिता परमेश्वर, यीशु के नाम में हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर कैसे देता है ?
103: पिता हम से क्यों और कैसे प्रेम करता है ?
104: यीशु की प्रार्थना के पहले भाग में कौन सा बुनियादी विचार प्रगट किया गया है ?
105: यीशु के द्वारा पिता का नाम प्रगट करने का क्या महत्व है?
106: पिता के नाम में हमारी रक्षा का क्या महत्व है ?
107: हमें दुष्ट से बचाने के लिये यीशु ने अपने पिता से कैसी विनती की ?
108: यीशु ने अपने पिता से क्या माँगा जो हमारे लिये लाभदायक होता ?
109: यीशु ने महा याजक के रूप में की हुई प्रार्थना का संक्षेप क्या है ?
110:बाग़ के दरवाजे पर यीशु ने स्वय: अपने आप को अपने शत्रुओं के सामने जिस तरह प्रगट किया उस का क्या अर्थ होता है ?
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