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Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
क - यीशु की यरूशलेम में अन्तिम यात्रा (यूहन्ना 7:1 - 11:54) अन्धकार का ज्योती से अलग होना
4. लाज़र का जिलाया जाना और उसका परिणाम (यूहन्ना 10:40 – 11:54)
अ) यीशु का यरदन के पार प्रयास (यूहन्ना 10:40 – 11:16)यूहन्ना 11:11-16 यीशु ने लाज़र को “हमारा प्रिय” कहा | यीशु और आप के चेले बार बार लाज़र के घर अतिथि बन कर रहते थे | इस लिये वो सब चेलों का मित्र था | इस लिये हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार अब्रहाम की उपाधी “परमेश्वर का मित्र” थी, उसी समान लाज़र “यीशु के परमप्रिय” थे | यीशु मृत्यु को “नींद” कह कर इस सत्य को स्पष्ट करते हैं कि मृत्यु जीवन का अन्त नहीं होती | हमारे शरीर नष्ट हो जाते हैं परन्तु हमारी आत्मायें बाकी रहती हैं | विश्वास के कारण आज हमारा विश्राम प्रभु में है | हम आपके जीवन में संतुष्ट और आराम से हैं, और अपने पुनरुत्थान के समय हम अपने मुक्तिदाता का हमें जगाना देख लेंगे | हम हमेशा जीवित रहेंगे | यीशु ने अत्यंत आत्मविश्वास से कहा, “मैं उसे जगाने जा रहा हूँ |” आप ने यह न कहा, “आओ, प्रार्थना करें ताकी जानें कि परमेश्वर हमें क्या करने के लिये कह रहा है और हम उस परिवार को कैसे सांत्वना दें |” जी नहीं, आप के मित्र की मृत्यु का समाचार मिलने से पहले यीशु अपने पिता से वार्तालाप करते रहे | आप को पूरा विश्वास था कि स्वय: आप के तेजस्वी पुनरुत्थान से पहले लाज़र को जिलाया जायेगा | यह आप के अनुयायियों के विश्वास को शक्तिशाली बनाने और आप के शत्रुओं को सिद्ध करने के लिये था कि केवल आप ही मसीह हैं | फिर आप ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं उसे मृतकों में से जिलाने जा रहा हूँ, जैसे एक माँ कह रही हो, “मैं अपने पुत्र को जगाने जा रही हूँ क्योंकि स्कूल जाने का समय हो चुका है |” यीशु को कोई संकोच न था, आप स्वय: जीवन और मृत्यु पर अधिकार रखते थे | यीशु पर किया हुआ विश्वास हमें हर तरह के भय से मुक्त करता है और जीवन में पुष्टीकरण करेगा | चेले उस समय मसीह की विजय का अर्थ समझ न सके | वो समझे लाज़र सो रहा है इस लिये यह आवश्यकता नहीं कि उसे जाकर जगाया जाये और इस लिये भी कि यहूदियों के हाथों उनके प्राण खतरे में पड़ते | तब यीशु ने स्पष्ट रूप में लाज़र की मृत्यु के विषय में कहा कि “वो मर गया है |” इस समाचार से चेले चिन्तित हो गये परन्तु यीशु ने उन्हें पुन:विश्वास दिलाया और कहा, “मै आनंदित हूँ |” इस लिये मृत्यु के विषय में परमेश्वर के पुत्र की यह प्रतिक्रिया थी | आप को उसमें विजय और पुनरुत्थान दिखाई देता है | मृत्यु शोक प्रगट करने का नहीं बल्की आनंदित होने का कारण होती है क्योंकि यीशु अपने अनुयायियों को जीवन का विश्वास देते हैं | आप जीवन हैं; जो आप पर विश्वास करता है वो आप के जीवन में सहभागी होता है | यीशु ने अपना प्रवचन जारी रखा, “मैं तुम्हारे लिये आनंदित हूँ कि उसकी मृत्यु के समय वहाँ न था और उसे उसी समय चंगा न किया | यह हर एक व्यक्ती के अन्त का चिन्ह है | परन्तु उसमें पाया जाने वाला विश्वास नया जीवन आरम्भ करता है | परन्तु आओ, उसके पास चलें |” यह जाना मानव जाती के लिये आंसू बहाने और शोक करने का संकेत था, परन्तु यीशु के लिये यह पुनरुत्थान की बात थी | हम परमेश्वर को धन्यवाद देते हैं कि जब हम कबर में लेटे होंगे तब यीशु कहेंगे, “चलो उस के पास चलें |” आप का हमारे पास आने का अर्थ स्वतंत्रता, जीवन और ज्योति होगा | प्रेरित थोमा, यीशु से प्रेम रखते थे और वो निडर थे | जब उन्हों ने यीशु का पक्का इरादा देखा तो उन्हें यह कल्पना न थी कि मसीह का उद्देश उसे कबर में से खींच निकालना था | इसलिये उन्हों ने अपने साथियों की ओर मुड़ कर आग्रहपूर्वक कहा, “हम यीशु को अकेला न छोड़ेंगे; हम अपने प्रभु से प्रीति करते हैं और मृत्यु तक आप का साथ देंगें | हम सब आप से जुड़े हुये हैं |” थोमा ने इस प्रकार अन्त तक अपनी निष्ठा जताई | प्रश्न: 75. लाज़र को बचाने के लिये यीशु विजेता समान आगे क्यों बढ़े?
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