Waters of LifeBiblical Studies in Multiple Languages |
|
Home Bible Treasures Afrikaans |
This page in: -- Albanian -- Arabic -- Armenian -- Bengali -- Burmese -- Cebuano -- Chinese -- Dioula? -- English -- Farsi? -- French -- Georgian -- Greek -- Hausa -- HINDI -- Igbo -- Indonesian -- Javanese -- Kiswahili -- Kyrgyz -- Malayalam -- Peul -- Portuguese -- Russian -- Serbian -- Somali -- Spanish -- Tamil -- Telugu -- Thai -- Turkish -- Twi -- Urdu -- Uyghur? -- Uzbek -- Vietnamese -- Yiddish -- Yoruba
Previous Lesson -- Next Lesson यूहन्ना रचित सुसमाचार – ज्योती अंध्कार में चमकती है।
पवित्र शास्त्र में लिखे हुए यूहन्ना के सुसमाचार पर आधारित पाठ्यक्रम
दूसरा भाग – दिव्य ज्योती चमकती है (यूहन्ना 5:1–11:54)
ब - यीशु जीवन की रोटी हैं (यूहन्ना 6:1-71)
4. यीशु लोगों को चुनने का मौका देते हैं, “स्वीकार करो या ठुकराओ” (यूहन्ना 6:22-59)यूहन्ना 6:34–35 यीशु ने अपने श्रोताओं में परमेश्वर की रोटी के लिये भूक सक्रिय की और उन्हें निश्चित कामों के बन्धनों से स्वतंत्र किया | आपने उन्हें उद्धार पाने के लिये प्रवृत करके परमेश्वर का वरदान प्राप्त करने के लिये तैयार किया और आप पर विश्वास करने की आवश्यकता स्पष्ट कर दी | यह सुनकर भीड़ ने उपरी तौर पर प्रसन्न हो कर मान लिया और कहा “ऐ दिव्य रोटी देने वाले, हमें यह विशेष वरदान हमेशा देते रहिये ताकी हमें कष्ट ना करना पड़े | हम आप पर निर्भर हैं इस लिये हमें अनन्त जीवन से परिपूर्ण कीजिये और अपनी शक्ती में से भी कुछ दीजिये |” वो अब भी दुनियावी रोटी के विषय में सोच रहे थे परन्तु कम से कम यह जानते थे कि परमेश्वर का वरदान विशेष है | अगर कोई मनुष्य परमेश्वर के पास आना चाहे तो आप उसे ठुकराते नहीं हैं | आप ने स्पष्ट किया कि मुख्यता आप परमेश्वर की रोटी हैं जो सारी दुनिया के लिये है परन्तु आप अन्नदाता नहीं हैं | आप अपने व्यक्तित्व में अनन्त जीवन के अंश देते हैं | इस से आप का मतलब यह था कि “मेरे बगैर तुम अनन्त जीवन नहीं पा सकते | मैं तुम्हारे लिये परमेश्वर का वरदान हूँ, मेरे बिना तुम मृत्यु को गले लगाओगे | जिस तरह रोटी तुम्हारे शरीर में जाकर जीने के लिये शक्ती उत्पन्न करती है उसी तरह मैं तुम्हारे अन्दर आना चाहता हूँ ताकी तुम्हारे दिमाग और अन्त:करण का नवीकरण कर सकूं और तुम आत्मा में जी सको | मेरे बगैर तुम कुछ नहीं कर सकते | तुम्हें मेरी प्रतिदिन आवयश्कता होती है और मैं अपने आप को तुम्हें बे रोक टोक के दे देता हूँ | तुम्हें कोई कीमत देने की आवयश्कता नहीं है | मुझे केवल अपने दिल में प्रवेश करने दो |” ऐ भाई, तुम्हें मसीह की आवयश्कता है | केवल आपका वचन पढ़ने और आपके विचारों को ग्रहण करना ही पर्याप्त नहीं है | तुम्हें स्वंय यीशु की आवयश्कता है | यीशु तुम्हारे लिये उतने ही आवश्यक हैं जितना प्रति दिन खाना और पानी आवश्यक होता है | अब यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम यीशु को प्राप्त करो या नाश हो जाओ | अब कदाचित तुम यह पूछो कि यीशु मेरे अस्तित्व में कैसे आ सकते हैं ? इस का उत्तर यीशु देते हैं: “अपने दिल में मेरी लालसा करो | मेरे पास आओ, धन्यवाद के साथ मेरा स्वागत करो और मुझ पर विश्वास करो |” हमारे विश्वास के द्वारा ही यीशु हमारे दिल में आते हैं | यीशु का धन्यवाद करो क्योंकी आप तुम्हारे लिये परमेश्वर का वरदान हैं | अपने आप को उन्हें समर्पित करो और प्रसन्न हो कर आप की प्रशंशा करो क्योंकि यीशु तुम में समाने के लिये तैयार हैं | अगर तुम यीशु को हमेशा के लिये अपने अन्दर आने के लिये निवेदन करेंगे तो आप अवश्य आयेंगे | तब यीशु आपको सांत्वना देंगे: “क्योंकि तुम ने मुझे स्वीकार किया है, मैं तुम में समाया रहूँगा, तुम्हारे जीवन की भूख मिटाऊंगा, इसके बाद फिर कभी दुनिया के धर्मों और उनकी विचारधारा के बारे में वार्तालाप ना करना कि क्या सही है | हर दलदल की तरफ ना जाओ ताकि उसमें से कुछ पी लो बल्की मैं तुम्हें शक्ती, अर्थ और शान्ति दूँगा |” यूहन्ना 6:36–40 यीशु ने पहले से ही गलील के लोगों को अनुग्रह की रोटी भरपूर दी थी | उन्हों ने आपको आपके पूर्ण अधिकार के साथ देखा था | परन्तु यह अनुभव किसी धारणा में नहीं बदला, ना ही उन्हें अपना विश्वास प्रगट करने की प्रेरणा मिली | वो अभी भी आशंका में लड़खडा रहे थे | वे आपको रोटी के प्रभु समझ कर आपके इच्छुक थे परन्तु आपके व्यक्तीत्व पर विश्वास करने में हिचकिचा रहे थे | उन्होंने आप को धन्यवाद के साथ स्वीकार नहीं किया | यीशु ने यहाँ भी येरूशलेम की तरह ही लोगों को स्पष्ट रूप से बताया की वो आप से अलग क्यों रहना चाहते हैं | आखिर इतने लोग यीशु पर विश्वास क्यों नहीं करते ? आश्चर्य की बात यह है कि यीशु ने ध्रष्टतापूर्वक यह नहीं कहा कि “यह तुम्हारा दोष है |” बल्की पिता परमेश्वर की तरफ इशारा करके बताया कि दिव्य गतिविधि की तरह विश्वास कैसे प्रबल होता है | यीशु नहीं चाहते कि किसी को भी छल या केवल वादविवाद से जीता जाये | परमेश्वर पापियों को आपको समर्पित करता है क्योंकी आप सच्चाई जानते हैं और यह भी कि वो किस हद तक पश्चताप करने और धर्म परिवर्तन के लिये तैयार हैं | केवल वही लोग यीशु की तरफ आते हैं जिन्हें पवित्र आत्मा आकर्षित करता है | मसीह झूटे लोगों, व्यभिचारियों और चोरों से अप्रसन्न नहीं होते | शर्त यह है कि वे पश्चताप करके आप के पास आयें | जो कोई आप के पास आया उसे आपने कभी नहीं ठुकराया, यहाँ तक की अपने शत्रुओं को भी | आप ने उन पर दया की और उनका उद्धार किया | मसीह स्वंय अपने लिये नहीं जिये, ना ही आपने अपना जीवन अपनी इच्छा के अनुसार आयोजीत किया | आप अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिये इस दुनिया में आये | आप ने खोये हुए पापियों का उद्धार करने और जो विश्वासी आप में रहने के इच्छुक थे उन्हें अपने पिता की इच्छा और उसके प्रेम के उद्देशों के अनुसार अपने पास रखने का प्रबंध किया | आपकी उदारता और उद्धार शक्ती महान हैं | ना मृत्यु, ना शैतान, ना पाप उन लोगों को आपके हाथों में से छीन सकते हैं जो आपकी शरण में हैं | आप अपनी दया से अपने अनुयाइयों को न्याय के दिन दोबारह जीवित करके अनन्त जीवन देंगे | क्या तुम परमेश्वर की इच्छा जानते हो ? वो चाहता है कि तुम उसके पुत्र पर से अपनी द्रिष्टि ना हटाओ, आप को जानो और आप पर विश्वास करो | आप ने अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण हो कर पवित्र आत्मा से जन्म लिया | उस के पश्चात वो चाहता है कि तुम उद्धारकर्ता और सारे विश्वासियों के साथ मिल कर एक अनन्त वाचा के अनुसार जो अमर है, एक हो जाओ | इस तरह तुम्हारे विषय में परमेश्वर का उद्देश पूरा हो जायेगा | जब पवित्र आत्मा एक विश्वासी के दुर्बल शरीर में प्रवेश करता है तब वह तुरन्त अनन्त जीवन प्राप्त करता है | यीशु में तुम्हारा विश्वास तुम्हें इस अनन्त जीवन की गैरंटी देता है जिस में प्रेम, आनन्द, शांती और सहनशीलता प्रगट होती है | तुम्हारे अन्दर जो परमेश्वर का जीवन होता है उसका कभी अन्त नहीं होता | परमेश्वर की इच्छा का अंतिम कार्य यह है कि यीशु तुम्हें मृत्कों में से जीवित करेंगे | यह विश्वासियों की सब से बड़ी आशा है और पुत्र ने तुम्हें अर्पित किये हुए जीवन का शिखर प्रकट होगा, अर्थात परमेश्वर के पुत्र की महीमा और उसके प्रेम की ज्योति दृष्टिगोचर होगी | प्रार्थना: ऐ पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, हम आपकी अराधना करते हैं | आप हम से दूर नहीं हैं परन्तु जब आप हमारे पास आये तब बहुसंख्यक लोगों ने आपको स्वीकार नहीं किया | आप ने हमें ज्ञान दिया ताकी हम देखें और आप को सच्ची रोटी के तौर पर स्वीकार करें | हम आपका धन्यवाद करते हैं कि आपने हमें ठुकरा नहीं दिया | आप ने हमारी भूकी आत्मा को तृप्त किया है | हम विश्वास रखते हैं कि आप हमें अनन्त जीवन पाने के लिये मृत्कों में से जिलायेंगे और ऐसी प्रसन्नता देंगे जिस का कभी अंत ना होगा | प्रश्न: 47. “जीवन की रोटी” का क्या अर्थ है?
|